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Home चुनावी समझ

भारतीय जनता पार्टी – लोकसभा में 2 से 262 सीटों तक का सफर

भारतीय जनता पार्टी का लोकसभा चुनावों में 2 सीटों के साथ शुरू हुआ सफर आज 272 सीटों तक पहुंच गया है। इस सुनहरे सफर में किसी ने अगर भाजपा का सबसे अधिक समर्थन किया है तो वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। परन्तु इस बात पर आपको तर्क-वितर्क सुनने में मिलते रहेंगे।लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी को ऐसे कई दिग्गज नेता दिए हैं जिनका नाम हमेशा भारतीय राजनीती के पटल पर सुना जाता है।

by मयंक पांडे
October 25, 2018
in चुनावी समझ, लोकसभा चुनाव
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भारतीय जनता पार्टी – लोकसभा में 2 से 262 सीटों तक का सफर
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2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में काबिज़ होकर भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय राजनीति में अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया था। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहाँ या तो कांग्रेस ने राज किया है या कुछ पार्टियों ने गठबंधन की सरकार बनाकर राज किया है। ऐसे में देश की स्वतंत्रता के 67 साल भारतीय जनता पार्टी का बहुमत के साथ सरकार बनाना एक बड़ी उपलब्धि ही है। चिड़िया जिस प्रकार एक-एक तिनके को इकठ्ठा कर अपना घोंसला बनाती है ठीक उसी तरह से भारतीय जनता पार्टी ने भी साल दर साल अपने साम्राज्य का विस्तार किया है। 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो कि बीजेपी की आधारशिला माना जाता है । इसके बाद 1977 आपातकाल के समय में भारतीय जनसंघ ने कुछ दलों के साथ मिलकर एक महागठबंधन बनाया और नाम रखा “जनता पार्टी”। जिसका एकमात्र लक्ष्य इंदिरा गाँधी को आम चुनावों में हराना था। हुआ भी कुछ वैसा ही, इंदिरा हारीं और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन मात्र ढाई वर्ष के अंतराल में ही महागठबंधन में आतंरिक फूट के चलते सरकार गिर गई और देसाई को इस्तीफा देना पड़ा। 1980 के दौर में जनता पार्टी के विलय के बाद जो नवनिर्मित राजनीतिक पार्टियां स्थापित हुई थीं उनमें से एक थी भारतीय जनता पार्टी। 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष बनाकर पार्टी की कमान सौंपी गई। लेकिन 1984 में हुए आम चुनावों में बीजेपी की झोली में केवल 2 सीटें ही आई और वाजपेयी की “सॉफ्ट हिंदुत्व” वाली रणनीति इन चुनावों में पूरी तरह से विफल रही, जिसके बाद पार्टी ने हिन्दुत्व को ही अपनी पार्टी का एजेंडा बनाने का निर्णय लिया। पार्टी के पहले अधिवेशन में भाषण देते हुए अटल ने कहा था “अँधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा”। उनका यह कथन आज सच होता नज़र आ रहा है। आगे हम आपको भारतीय राजनीति में भाजपा के संघर्ष के बारे में बतलाएंगे।

भारतीय जनता पार्टी का उदय

भारतीय जनता पार्टी का लोकसभा चुनावों में 2 सीटों के साथ शुरू हुआ सफर आज 272 सीटों तक पहुंच गया है। इस सुनहरे सफर में किसी ने अगर भाजपा का सबसे अधिक समर्थन किया है तो वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। परन्तु इस बात पर आपको तर्क-वितर्क सुनने में मिलते रहेंगे।लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी को ऐसे कई दिग्गज नेता दिए हैं जिनका नाम हमेशा भारतीय राजनीति के पटल पर सुना जाता है। 1980 के लोकसभा चुनावों में केवल 2 सीटें जीतने के बाद 1984 में बीजेपी की कमान लालकृष्ण आडवाणी को सौंप दी गई । 1984 के चुनावों में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के बाद अटल ने कहा था – “हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ” । आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने राम जन्मभूमि आंदोलन के मुद्दे को उठाया और इस आंदोलन में एक प्रमुख दायित्व निभाया। 1980 के दशक की शुरुआत में विश्व हिन्दू परिषद् ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करने के उद्देश्य से एक आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन की शुरुआत इसलिए की गई थी क्योंकि विश्व हिन्दू परिषद् का कहना था कि यह क्षेत्र राम की जन्मभूमि है और यहाँ पर मस्जिद निर्माण के उद्देश्य से बाबर ने उस मन्दिर को ध्वस्त करवाया था। चूँकि अब भाजपा ने हिन्दुत्व और हिन्दू कट्टरवाद का पूर्ण कट्टरता के साथ समर्थन करने का एजेंडा बनाया ही था तो इस अभियान का भी उन्होंने समर्थन आरम्भ कर दिया और इसे अपने चुनावी अभियान का हिस्सा भी बना लिया। राम जन्मभूमि आंदोलन का समर्थन कर के चुनावों में बीजेपी ने एक तबके के वोटों का बड़ी आसानी से ध्रुवीकरण कर लिया। और 1989 के लोकसभा चुनावों में 86 सीटें जीतकर वी.पी सिंह की सरकार को समर्थन दिया। उसके बाद 1990 के सितम्बर महीने में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में एक “रथ यात्रा” निकाली थी। इस “रथ यात्रा” को भारतीय राजनीती के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में गिना जाता है। बिहार सरकार को यह अंदेशा पहले से ही हो गया था कि इस यात्रा के कारण प्रदेश में दंगों की स्थिति बन सकती है जिसके फलस्वरूप सरकार ने आडवाणी को गिरफ़तार करवा लिया। और इसके बाद तो आलम यह था कि संघ के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में जम कर बवाल मचाया और बाबरी मस्जिद के ढाँचे को विध्वंस कर दिया गया। इस राजनीतिक उठापटक के बीच बीजेपी ने वी.पी सरकार को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया।

1994 के बाद पार्टी में हुए विचान-मंथन के आधार पर बीजेपी ने अपनी छवि को सुधरने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जिसका फायदा उसे 1996 के 11वें आम चुनावों में हुआ। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 161 सीटें जीती और सबसे बड़े राजनीतिक दल के तौर पर उभरे। जिसके बाद भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया लेकिन लोकसभा में जादुई आंकड़े को प्राप्त न करने के कारण भाजपा की वह सरकार गिर गई। 1998 में भी अटल सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी लेकिन 1999 में हुए चुनावो में भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल कर पूरे 5 साल सरकार चलाई। इसके बाद 2003 और 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को विपक्ष में बैठना पड़ा जिसके बाद 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की आंधी ने सारे विपक्षियों को उड़ा फेंका और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई।

भारत के राज्यों में बीजेपी का विस्तार

2014 के लोकसभा चुनावों में जब मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तब केवल 4 राज्यों में ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। चुनावों के बाद ही अमित शाह को बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। जिसके बाद तो भगवा रंग लगभग पूरे देश पर छाने लगा। साल 2018 आने तक भारत के 29 राज्यों में से 21 राज्यों पर या तो बीजेपी या फिर एनडीए गठबंधन की सरकारें हैं । लोकसभा चुनावों के बाद अमित शाह और मोदी की जोड़ी ने एक के बाद एक कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया। हैरानी तो तब हुई, जब पूर्वोत्तर के राज्यों में भी भारतीय जनता पार्टी ने फ़तेह हासिल करी।

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्षों की सूची

वर्षअध्यक्ष का नाम
1980-1986अटल बिहारी वाजपेयी
1986-1990लालकृष्ण आडवाणी
1991-1993मुरली मनोहर जोशी
1993-1998लालकृष्ण आडवाणी
1998-2000कुशाभाऊ ठाकरे
2000-2001बंगारू लक्षमन
2001-2002के-जन कृष्णमूर्ति
2002-2004एम. वेंकैया नायडू
2004-2005लालकृष्ण आडवाणी
2005-2009राजनाथ सिंह
2010-2013नितिन गडकरी
2013-2014राजनाथ सिंह
2014-अभी तकअमित शाह

 

Tags: लोकसभा चुनाव
मयंक पांडे

मयंक पांडे

यह मयंक पांडेय हैं। अच्छी-खासी तो नहीं पर थोड़ी बहुत राजनीतिक समझ रखते हैं जिससे अच्छा-खासा लिख देते हैं। कविताएं लिखने के बहुत शौक़ीन हैं। यो-यो की रैप से पियूष मिश्रा का स्वेग, सब सुनते हैं! केवल एक शर्त पर....गानों के बोल तार्किक होने चाहिए। थोड़ा कम बोलते हैं, बापू ने कहा था "तभी बोलो जब वो मौन रहने से बेहतर हो" बस यूँ मान लें उसी पर विश्वास रखते हैं।

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