वर्ष 2000 में दिल से अलग हुआ एक राज्य….अरे अरे चौंकिए नहीं हमारे या आपके दिल से कोई भी राज्य अलग नहीं हुआ है। हम तो यहाँ बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ राज्य की जो 1 नवम्बर 2000 को हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश से विभाजित होकर एक अलग राज्य बना था। एक ऐसा राज्य जिसे एक समय पर धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता था। इस राज्य के बारे में ऐसा कहा जाता था कि विकास होने में इस राज्य को अभी कुछ सादियाँ लगेंगी। पर यह बातें महज़ बातें ही रह गयी। फिर भी एक ऐसा समय था जब इस राज्य ने नक्सलवाद से बहुत लड़ा है, जूझा है। बहुत खून देखा है, कई मौतें देखी हैं। बहुत माओं की गोद को सूना होते देखा है, ना जाने कितनी मांगों का सिंधूर उजड़ते हुए देखा है, कई बेटे खोए हैं, कई बेटों ने अपने पिताओं को खोया है। इतनी हिंसा के बावजूद इस राज्य ने अपना विकास खुद अपने हाथों से लिखा है। इस समय रमन सिंह यहाँ के मुख्यमंत्री हैं।
बहरहाल, इस साल के अंत में यहाँ भी विधानसभा चुनाव होने हैं। कुल 90 सीटों पर मतदान होंगे। लेकिन भाजपा की धुर विरोधी पार्टी कांग्रेस इस राज्य में सत्ता पर काबिज़ होने के लिए अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा देगी। एक और राजनीतिक पार्टी यहाँ अपना खासा महत्तव रखती है जिसका नाम है बसपा यानि कि बहुजन समाज पार्टी। छत्तीसगढ़ में बसपा को वोट कटवा पार्टी के तौर पर देखा जाता है। अब यह तो समय ही बताएगा कि किसने किसके कितने वोट काटे ? अजीत जोगी भी सियासी दंगल में महावीर सिंह फोगाट बनकर उतर आए हैं। जो विरोधी पार्टियों के साथ दो-दो हाथ करने के लिए बेकरार हैं।
छत्तीसगढ़ के ओपिनियन पोल्स में भी उन्हें जनाता की अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। चुनाव आयोग ने चुनावों की तारीखों का एलान भी कर दिया है। राज्य में दो चरणों में चुनाव होने हैं। पहले चरण के मतदान 12 नवम्बर तो वहीं दूसरे चरण के मतदान 20 नवम्बर को होने हैं। तो अब यह देखना बड़ा मजेदार होगा की राज्य में किसकी सरकार बनती है ? और कौन अपने हाथ मलते हुए नज़र आता है। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे प्रदेश की अहम् विधानसभा सीटों के बारे में और जानने का प्रसास करेंगे कि किस क्षेत्र में कौन सा राजनीतिक दल मजबूत स्थिति में है।
राजनीतिक दलों के लिए किस सीट का महत्त्व है खास
बस्तर की विधानसभा सीट है खास
राजनीतिक गलियारों में एक कहावत बड़ी मशहूर है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि लोकसभा की सबसे अधिक सीटें उत्तर प्रदेश राज्य में ही आती हैं। उसी तरह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का रास्ता भी बस्तर से होकर गुजरता है। बस्तर में विधानसभा की कुल 12 सीटों पर वोट पड़ते हैं। गौर करने योग्य बात यह है कि 12 सीटों में से 11 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, केवल 1 सीट ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। पिछली बार 2013 में हुए चुनावों में बस्तर की बाज़ी तो कांग्रेस ने जीत ली थी पर वह बहुमत नहीं ला पाई थी।
साल 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में 8 सीटों पर कांग्रेस ने अपना परिचम फहराया था तो वही बीजेपी मात्रा 4 विधानसभा सीटों पर जीत पाई थी। लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा यह अवश्य चाहेगी कि बस्तर में भी भगवा रंग की आंधी चले और कांग्रेस का सूपड़ा साफ किया जाए। बस्तर में दोनों पार्टियां भाजपा और कांग्रेस जमकर पसीना बहा रहे हैं। बस्तर की चुनावी हवाओं से यह पता चल रहा है कि यहाँ की आवाम के मन में विकास का मुद्दा पक रहा है। विकास के मुद्दे पर तो बीजेपी ने मास्टरी कर रखी है जबकि कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस इस फ़िराक में रहेगी कि भारतीय जनता पार्टी को नक्सल समस्या के मोर्चे पर घेरा जाए और प्रदेशवासियों के वोट हासिल किये जाएं।
राजधानी रायपुर की सीट भी है खास
रायपुर के वोटरों का मिज़ाज नेताओं और पोलिटिकल पार्टियों की समझ से परे है। रायपुर संभाग की 20 विधानसभा सीटों पर इस साल के अंत तक मतदान होने हैं। पर रायपुर की इस सीट पर जीत का सफर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियों(भाजपा और कांग्रेस) के लिए कठिन होने जा रहा है। इसकी यह वजह है कि यहाँ विधानसभा के परिणाम हर बार चौंकाने वाले होते हैं। कभी भारतीय जनता पार्टी मजबूत स्थिति में आ जाती है तो कभी कांग्रेस बाज़ी मार जाती है। फिलहाल यहां की 15 सीटों पर भाजपा, 4 पर कांग्रेस व एक पर निर्दलीय पार्टी का कब्जा है।
वहीं, 2008 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 13 सीटें जीती थी और भाजपा 7 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। रायपुर सीट के बारे में एक बात और जानने योग्य है कि यहाँ से 3 नेता लगातार चुनावों को जीतते हुए आ रहे हैं।भारतीय जनता पार्टी के तीन दिग्गज नेता देवजी पटेल, बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत रायपुर क्षेत्र की विधानसभा सीटों से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। तो वहीं, बिंद्रानवागढ़ क्षेत्र की सीट भी दो चुनावों से भारतीय जनता पार्टी के खाते में है। कांग्रेस भी धमतरी की सीट से चुनाव जीतती हुई आ रही है इस सीट पर कांग्रेस पार्टी लगातार दो बार से चुनावी मैदान मार रही है।
कटघोरा विधानसभा के लिए क्या है पार्टियों की रणनीति
कटघोरा का यह विधानसभा क्षेत्र अपने कोयले की खदानों, कृषि युक्त भूमि के लिए बड़ा मशहूर है। कुछ समय पूर्व यहां की गई एक रैली में मुख्यमंत्री ने कहा था कि इस क्षेत्र की जनता ने मुझ पर जो विश्वास किया है और सेवा का अवसर दिया है उसे मैं पूरी ईमानदारी से निभा रहा हूं। रमन सिंह के नेतृत्व में क्षेत्र के विकास की परिकल्पना पूर्ण करने में मदद मिली है। कटघोरा की इस विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की सम्भावना है। इस क्षेत्र में कांग्रेस के बहुचर्चित नेता बोधराम कंवर को एक मजबूत उम्मीदवार माना जाता है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी के लखनलाल देवांगन को भी इस क्षेत्र में बेहद मजबूत आँका जाता है आपको यह बता दें कि लखनलाल देवांगन इस समय यहाँ से विधायक भी हैं। कटघोरा क्षेत्र से इस विधानसभा चुनावों के लिए तीसरे प्रत्याशी की रेस में चल रहे हैं छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस पार्टी के गोविन्द सिंह राजपूत।
छत्तीसगढ़ राज्य में भी इस समय आने वाले चुनाव की हवाएं चल रही हैं। इन चुनावी हवाओं में कई छोटी-मोटी राजनीतिक पार्टियाँ तो पलक झपकते ही ऐसे उड़ जाती हैं मानो किसी मकान के छप्पर से टीन उड़ जाती है । यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा कि कौन सी पार्टी इन हवाओं में उड़ गई और किस पार्टी ने अन्य पार्टियों को उड़ा दिया।