लोकसभा चुनाव के ठीक बाद महाराष्ट् में विधानसभा का चुनाव भी होना है।महाराष्ट्र में वर्त्तमान में भाजपा और शिवसेना गठबंधन का शासन है। 2014 चुनाव से ठीक पहले शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था और सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ लिया था।हालांकि चुनाव परिणाम में शिवसेना को कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। चुनाव परिणाम आने के बाद शिवसेना ने दुबारा से भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया और सत्ता की साझेदार बनी। सरकार गठन के बाद लगभग 4 वर्ष का समय बीत चुका है और चुनाव दुबारा दस्तक देने वाले हैं।सत्ताधारी भाजपा अपने विकास के कामों को जनता को याद दिला रही है। भाजपा कह रही है कि उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी तरह का घोटाला नहीं हुआ उनके मंत्री और मुख़्यमंत्री साफ़ छवि के हैं ।उनकी सरकार में समाज के सभी वर्गों का विकास हुआ है।
वहीं विपक्षी दलों का कहना है की महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने प्रदेश में किसी भी प्रकार का विकास कार्य नहीं किया उन्होंने सिर्फ धर्म की राजनीति की है। भाजपा के विपक्षी दल किसी भी हालात में भाजपा को सत्ता से दूर करना चाहते हैं ।भाजपा के लिए विपक्षियों से बड़ी समस्या उसके सहयोगी शिवसैनिक हैं। शिवसेना भाजपा के साथ सत्ता की साझेदार तो है परन्तु उसके नेता खुल कर भाजपा के नीतियों का विरोध करते रहे हैं।कई बार वो गठबंधन तोड़ने की धमकी भी दे चुके हैं।शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से भी भाजपा की केंद्र और प्रदेश सरकार पर हमला बोलती रही है। वहीं उसके मुख्य विपक्षी की बात करें तो कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी NCP से भाजपा को कड़ी टक्कर मिल सकती है।इसके अलावा महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे भी बड़ा नाम है।हालांकि चुनावों का इतिहास देखे तो उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) को चुनावों में कोई खास सफलता नहीं मिल पाती है।इन बड़ी पार्टियों के अलावा सपा ,बसपा, AIMIM और लेफ्ट पार्टियों का भी कुछ जगहों पर ही प्रभाव देखने को मिल सकता है।
हिंदूवाद और गैर मराठी का मुद्दा रह सकता है हावी
भारतीय जनता पार्टी की राजनीति हमेशा से हिंदूवाद को आगे बढ़ने के लिए मुखर है। वहीं महाराष्ट्र में शिवसैनिक भी अपने आप को हिन्दुवाद के सबसे बड़े सिपाही के रूप में दिखाना चाहते हैं। उनके राजनीति के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि हिन्दुवाद उनका सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। हाल ही में शिवसेना ने घोषणा की है कि दिवाली के बाद उनके नेता उद्धव ठाकरे अयोध्या जायेंगे और एक बड़ी रैली निकालेंगे।शिवसेना का कहना है की इसके द्वारा ही राममंदिर बनाने के लिए सरकार पर दवाब बनाया जायेगा। जानकारों का मानना है ऐसा करके शिवसेना भाजपा सरकार पर दवाब बनाना चाहती है। इसके अलावा गैर मराठी का मुद्दा हमेशा से ही महाराष्ट्र में चर्चित विषय रहा है।आज भी ताज़ा उदाहरण देखने को मिल जाता है जब बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों पर हमले किये जाते हैं।राज ठाकरे मौजूदा समय में सबसे ज्यादा विरोध गैर मराठी लोगों का करते हैं। उनका मानना है कि राज्य सरकारों का फ़र्ज़ है कि वो अपने नगरिकों को रोजगार और सुरक्षा दें।सिर्फ मराठी लोगों का ही महाराष्ट्र पर हक़ है।
कांग्रेस और पवार का हो सकता है गठबंधन
कांग्रेस पार्टी पहले के मुकाबले काफी ज्यादा कमजोर हुई है।2014 लोकसभा चुनाव के बाद लगभग ज्यादातर चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा है।पिछले विधानसभा की बात करे तो कांग्रेस को 42 तो शरद यादव कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 41 सीटें नसीब हुई थी। 2014 तक कांग्रेस और NCP महाराष्ट्र में सत्ता की साझेदार थी।पिछले चुनाव में महाराट्र में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी। उनके सरकार पर लगातार करप्शन के इल्ज़ाम लग रहे थे। वही कांग्रेस की सहयोगी NCP को तो नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान नेशनल करप्ट पार्टी तक कह दिया था।हालांकि कांग्रेस इस बार फिर से सत्ता में वापसी करना चाहती है।इस बार भी उम्मीद जताई जा रही है की शरद पवार और कांग्रेस में गठबंधन हो सकता है। इस गठबंधन में सपा ,बसपा और वामदल भी शामिल हो सकते हैं।
पूर्वांचल वोट है अहम
महाराष्ट्र की राजनीति में पूर्वांचल लोगों के वोट काफी अहम साबित होते हैं। महाराष्ट्र में लाखो की संख्या में ऐसे लोग है जो रोजगार की तलाश में मुंबई आये और यही के हो कर रह गए। सिर्फ मुंबई ही नहीं नासिक ,पुणे जैसी जगहों में भी इनकी संख्या लाखों में है। मनसे जैसी पार्टियां मराठी अस्मिता के नाम पर इनका जमकर विरोध करती रही हैं। ऐसा माना जाता है कि पूर्वांचल के लोग भाजपा को वोट करते रहे हैं। इस बार भी उम्मीद जताई जा रही है कि आगामी विधानसभा में पूर्वांचल के लोगों का रुख भाजपा की तरफ ही होगा। वैसे कांग्रेस , नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी भी उन्हें अपने पक्ष में मोड़ने का लगातार प्रयाश करती रही है।आपकी जानकारी के लिए बता दें कि महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं।
AIMIM मुस्लिम बहुल इलाके में उतार सकती हैं अपने उम्मीदवार
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल इलाके में अपना उम्मीदवार उतार सकती है। ओवैसी भी अपनी पार्टी का अन्य राज्यों में विकास करना चाहते हैं। वर्त्तमान में AIMIM के दो विधायक महाराष्ट्र विधानसभा में हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 288 विधानसभा वाली महाराष्ट्र में केवल 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन सफलता दो विधानसभा में ही मिल पाई थी। वहीं मत प्रतिशत की बात करें तो लगभग 13 प्रतिशत मत उन्हें मिले थे। महाराष्ट्र में मुसलमानों की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। वहीं कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ उनकी आबादी बहुत घनी है। ओवैसी भी इन्ही क्षेत्रों में ज्यादा फोकस करना चाहते हैं। क्योँकि उनकी पार्टी को वोट करने वालों की ज्यादा संख्या मुसलमानों की है।
2014 विधानसभा चुनाव का परिणाम
2014 के विधनासभा चुनाव में भाजपा को 122 सेट मिली थी तथा शिवसेना को 63 सीटों पर जीत हुई थी। महाराष्ट्र में सरकार गठन के लिए 145 विधायकों की जरुरत थी। दोनों दलों ने मिल कर सरकार का गठन किया था।
राजनितिक दाल | लड़े | जीते |
---|---|---|
बीजेपी | 260 | 122 |
शिवसेना | 282 | 63 |
कांग्रेस | 287 | 42 |
राकांपा | 278 | 41 |
बहुजन विकास अघाड़ी | 36 | 3 |
पीजेंट एंड वर्कर पार्टी ऑफ़ इंडिया | 51 | 3 |
AIMIM | 24 | 2 |
भरिपा बहुजन महासंघ | 70 | 1 |
सीपीआई (M) | 20 | 1 |
मनसे | 220 | 1 |
राष्ट्रीय समाज पक्ष | 06 | 1 |
सपा | 22 | 1 |
निर्दलीय | 1699 | 7 |
कुल सीट | 288 | 288 |