मोतिहारी लोकसभा सीट का इतिहास देखने पर पता चलता है कि इस सीट पर हमेशा से स्वर्ण उम्मीदवारों का ही कब्ज़ा रहा है। सिर्फ 1984 में प्रभावती गुप्ता और 1998 में रमा देवी गैर सवर्ण उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुई थी। 2009 लोकसभा चुनाव से मोतिहारी सीट को पूर्वी चम्पारण के नाम से जाना जाता है।
1952 से 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस पार्टी का कब्ज़ा था और कांग्रेस के बिभूति मिश्रा लगातार 5 बार विजयी हुए थे। उसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी मिश्रा मधुकर 1991 में इस सीट से जीत कर सांसद बने। 1989 में पहली बार बीजेपी को इस सीट पर जीत हासिल हुई और राधामोहन सिंह सांसद बने।
इसके आलावा राजद का भी 2 बार इस सीट पर कब्ज़ा रहा। लेकिन राजद के टिकट पर चुनाव जीतने वाले दोनों ही नेता अब राजद का साथ छोड़ चुके हैं। रमा देवी देवी शिवहर से बीजेपी की सांसद हैं जबकि अखिलेश सिंह कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सांसद हैं।
जातीय समीकरण की बात करें तो मोतिहारी में ब्राह्मण,राजपूत, भूमिहार और कायस्थ का लगभग 5 लाख से ज्यादा वोट है। यही कारण है कि इस सीट पर सवर्णों का दवदबा दिखता है। सवर्णों के अलावा अन्य समुदाय का वोट भी काफी हद तक इस सीट पर अपना प्रभाव रखता है।
यादवों का 1.5 लाख, मुस्लिम 2 लाख और कुशवाहा समुदाय का वोट भी लगभग एक लाख के करीब माना जाता है।इस लोकसभा क्षेत्र में मोतिहारी, पिपरा, गोविंदगंज, हरिसिद्धि, केसरिया और कल्याणपुर की कुल 6 विधानसभा सीटें आती हैं।
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इस बार ऐसी खबरें आ रही थीं कि राधामोहन सिंह इस बार मोतिहारी से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और उन्हें शिवहर से चुनाव लड़ाया जा सकता है। शिवहर की वर्त्तमान सांसद रमा देवी का टिकट कटने की खबरें मीडिया में खूब सुर्खियां बटोर रही हैं ।
ऐसी खबरें आयी थी कि राधामोहन सिंह को शिवहर भेजा जा सकता है। जबकि इस सीट पर बीजेपी का टिकट पाने के लिए प्रमोद कुमार, राणा रणधीर सिंह और सचितानंद प्रसाद सिंहजैसे दिग्गज नेता प्रयासरत है। हालांकि इसका कोई औपचारिक एलान नहीं किया गया है।
कहा जा रहा है कि मोतिहारी में राधामोहन सिंह के खिलाफ लहर चल रही है लेकिन राधामोहन सिंह खुद मोतिहारी सीट छोड़ने के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। जबकि दूसरी ओर से मोतिहारी में रालोसपा नेता माधव आनंद लगातार सभी विधानसभाओं का दौरा कर रहे हैं।
माधव आनंद भी भूमिहार जाति से आते हैं और ऐसे में बीजेपी आलाकमान को लगता है कि राधामोहन सिंह के खिलाफ सवर्ण महागठबंधन के उम्मीदवार को ज्यादा तवज़्ज़ो दे सकते हैं।महागठबंधन की तरफ से माधव आनंद का टिकट तय माना जा रहा है।
सवर्ण का वोट अगर राधामोहन सिंह के खिलाफ गया तो रालोसपा प्रत्याशी माधव आनंद को जीत पाने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। क्योंकि कुशवाहा वोट मुख्य रूप से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का माना जाता है और उनकी आबादी लगभग 1 लाख के आस-पास है।
रालोसपा के महागठबंधन का हिस्सा होने के कारण यादव वोट भी माधव आनंद के पक्ष में जाने की पूरी सम्भावना है। राजद का मुख्य वोट-बैंक यादव ही माना जाता हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के भी वोटर लगभग 2 लाख हैं। मुस्लिम समुदाय हमेशा से ही बीजेपी के विरोध में वोट करने के लिए जाना जाता रहा है।
यानि साफ़तौर पर कहा जा सकता है कि राधामोहन सिंह का साथ अगर सवर्णों ने छोड़ा, तो इसका सीधा फायदा माधव आनंद को होगा। इंडियन इलेक्शन न्यूज़ ने माधव आनंद से फ़ोन पर सवाल किया कि अगर राधामोहन सिंह मोतिहारी सीट छोड़ते है तो क्या इसका सीधा फायदा आपको मिल सकता है ?
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इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि“मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष (उपेंद्र कुशवाहा) के निर्देश पर काम कर रहा हूँ। लोगों का भरपूर प्यार और समर्थन मिल रहा है। मुझे और महागठबंधन को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बीजेपी का कौन-सा उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है।
फोन पर बातचीत के दौरान वह राधामोहन सिंह पर निशाना साधना भी नहीं भूले और उनकी कई कमियों को गिना डाला। इशारों में उन्होंने यह भी संकेत दिया कि महागठबंधन में उनका टिकट मोतिहारी से तय है।
हालांकि वह टिकट के मुद्दे पर खुलकर नहीं बोले।इंडियन इलेक्शन न्यूज़ ने केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह का पक्ष जानने के लिए फ़ोन पर उनसे संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।
इंडियन इलेक्शन न्यूज़ आपको केवल आकड़ों और अपने विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर यह जानकारी दे रहा है। बीजेपी या एनडीए के किसी नेता द्वारा इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है।