राहुल गांधीवह नाम है जो भारतीय राजनीति में हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है। नकारात्मक या सकारात्मक किसी भी तरीके से यह भारतीय मीडिया के लिए सुर्खियां बने रहते हैं। राहुल गांधी का परिवार देश का सबसे बड़ा राजनीतिक घराना है और कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है।
वर्तमान में राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं इससे पहले यह जिम्मेदारी राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी के पास थी। अगर कांग्रेस पार्टी के इतिहास की बात करें तो राहुल से पहले उनके नाना यानि जवाहरलाल नेहरू, दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी भी इस पद को संभाल चुके हैं ।
राहुल गांधी से पहले उनके परिवार के जितने भी सदस्य राजनीति में सक्रिय हुए उन्होंने पार्टी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। परंतु डेढ़ दशक बीत जाने के बाद भी राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कुछ खास कमाल नहीं कर पाई और अपनी सत्ता को लगातार चुनावों में खोती हुई चली गई।
हालांकि साल 2018 के आखिरी महीने में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन लोकसभा चुनाव में जीत के लिए महज इतना काफी नहीं है।ऐसा कहा जाता था कि जब राहुल को पार्टी की जिम्मेदारी पूरी तरह से सौंप दी जाएगी तो कांग्रेस चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करेगी। लेकिन यह भी सच्चाई है कि राहुल को अध्यक्ष बने लगभग 2 साल बीत चुके हैं और पार्टी को ज्यादातर चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि राहुल गांधी को परिपक्व नेता के तौर पर जब भी मीडिया और सोशल मीडिया में माहौल बनाया जाता है तबअगले ही पल राहुल गांधी अनजाने में ऐसी हरकत कर जाते हैं जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचता है। तो आइए आज जाने की कोशिश करते है कि आखिर राहुल गांधी बाकी राजनेताओं से राजनीति के मैदान में क्यों पिछड़ रहे हैं ।
भाषण कला में नहीं हासिल है मोदी जैसी महारथ
किसी भी राजनेता को बड़ा बनाने में उसके भाषण कला का बहुत बड़ा योगदान होता है। इतिहास उठाकर देखने पर पता चलता है कि चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गाँधीया जवाहरलाल नेहरू इन सभी नेताओं के भाषणों में जनता को सम्मोहित करने की ताकत होती थी।
इसके उलट राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह जनसभाओं में लोगों को संबोधित करते हुए वहां मौजूद जनता को आकर्षित नहीं कर पाते। इसके अलावा राहुल गांधी के बारे में हम सभी लोग जानते हैं कि वह हिंदी भाषा से ज्यादा अपने आप को अंग्रेजी में सहज महसूस करते हैं।
भारत की राजनीति में अगर राष्ट्रीय स्तर का नेता बनना है तो हिंदी की भूमिका सबसे बड़ी बड़ी होती है। आपको याद होगा जब एक जनसभा के दौरान राहुल गांधी विश्वेश्वरैया को सही तरीके से उपचारित नहीं कर पाए थे जिसका विपक्षियों ने जमकर मजाक बनाया था।
तथ्यों को सही तरीके से नहीं परोसते
राहुल गांधी की दूसरी बड़ी खामी यह है कि जब वह जनसभाओं को संबोधित कर रहे होते हैं, तो कई बार ऐसे तथ्यों को भी बोल जाते हैं जिनका सच्चाई से कुछ लेना देना नहीं है। उदाहरण के तौर पर देखें तो मध्यप्रदेश में चुनावी रैली के दौरान उन्होंने शिवराज सिंह बेटे का नाम पनामा पेपर में बता दिया जबकि पनामा पेपर में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे का नाम आया था।
मामले ने जब तूल पकड़ा तो राहुल ने कह दिया कि वह कंफ्यूज हो गए थे। इसके अलावा उनके कई ऐसे बयान हैं जो उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर देता है।ऐसे ही 19 जनवरी 2016 को राहुल गांधी ने एक ऐसा बयान दिया जो मीडिया में चर्चा का विषय बन गया उन्होंने कहा था कि उन्हें माइक्रोसॉफ्ट के स्टीव जॉब्स की तरह बनना होगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि स्टीव जॉब्स माइक्रोसॉफ्ट नहीं बल्कि एप्पल कंपनी के संस्थापक थे। इसके अलावा राहुल गांधी तब भी चर्चा में रहे थे जब उन्होंने गरीबी को बस मानसिक स्थिति बता दिया था।
नादानियां कर देते हैं राहुल
कांग्रेस पार्टी पर हमेशा यह आरोप लगता है कि वह भ्रष्टाचार के संरक्षक है। परंतु 2013 में जब राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं के बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस में आ कर भ्रष्टाचार विरोधी ऑर्डिनेंस को फाड़ दिया था, तो ऐसा लगा कि राहुल गांधी भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस चाहते हैं।हालांकि राहुल गांधी के इस हरकत को मीडिया में बहस का मुद्दा बनाया गया और कहा गया कि यह प्रधानमंत्री और संसद का अपमान है।
इसके अलावा 2017 में जब गुजरात का विधानसभा चुनाव हुआ तो राहुल गांधी काफी आक्रामक दिखे।चुनाव विशेषज्ञों ने भी राहुल गांधी के इस रवैया को जमकर सराहा और कहा कि अगर राहुल गांधी इस तरह राजनीति करेंगे तो आने वाले भविष्य में जरूर मोदी के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं।
लेकिन हुआ इसके बिलकुल विपरीत, लोकसभा में पूरे सदन के सामने राहुल गांधी ने एक भाषण दिया और नरेंद्र मोदी से जबरदस्ती गले मिल गए। मीडिया के लिए यह एक मुद्दा तो था परंतु अगले ही पल राहुल गांधी ने अपने सहयोगी और कांग्रेस के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को आंख मारकर मीडिया को एक नया मसालेदार मुद्दा दे दिया।यह सभी प्रकरण राहुल गाँधी की नादानियां दिखाता है।
यूपीए में राहुल की स्वीकार्यता कम
जब सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थी तब यूपीए के घटक दलों के साथ उनके संबंध अच्छे थे।क्षेत्रीय दल उन्हें एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर तरजीह देते थे। परंतु इसके उलट राहुल गांधी की छवि एक परिपक्व नेता ना होने की वजह से क्षेत्रीय दल उन्हें अपना लीडर स्वीकारने में कतराते हैं।
उदाहरण के लिए अगर हम वर्तमान की राष्ट्रीय राजनीति को देखें तो समूचे देश में नरेंद्र मोदी को हारने महागठबंधन को मजबूत करने की कवायद चल रही है।कांग्रेस भी सभी दलों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी से राजनीतिक लड़ाई लड़ना चाहती है।
लेकिन जब प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की बात आती है तो बसपा, तृणमूल कांग्रेस, सपा जैसे क्षेत्रीय दल राहुल गांधी से परहेज करते हैं।इसलिए कहा जा सकता है कि राहुल गांधी यूपीए की अपने घटक दलों के बीच भी लोकप्रिय छवि नहीं बना पाए हैं।