पूर्वी दिल्ली में सील तोड़ने वाले मामले के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मनोज तिवारी को बड़ी राहत दी है। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मनोज तिवारी के खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मनोज तिवारी पर लगे आरोप में किसी तरह की कानूनी अमानना को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने मनोज तिवारी के मामले की कार्यवाही को भाजपा पर छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा कानून को अपने हाथ में ले सकता है। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने गए प्रतिनिधि मनोज तिवारी के रवैए से नाराजगी जताई और कानून हाथ में लेने के लिए मनोज तिवारी के बर्ताव को आहत करने वाला बताया।
दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाके के गोकुल पुर गांव में एक डेयरी पर लगी सील तोड़ने का मामला मनोज तिवारी पर दायर किया गया था। 16 सितंबर को उत्तर पूर्वी सांसद और भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने मकान पर लगे सीलिंग को तोड़ दिया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने समिति की रिपोर्ट पर 19 सितंबर को तिवारी को अवमानना का नोटिस जारी किया था।
मनोज तिवारी ने अपनी दलील में कहा था कि जिस मकान को दिल्ली बताकर सील किया गया था उस मकान में एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार और दो भैंस को पालता हुआ गुजर-बसर कर रहा था। खुद पर लगे आरोप खंडन करते हुए पूरे इलाके के सभी मकानों को दरकिनार कर केवल इस मकान को डेयरी बता कर सील करना गलत करार दिया। मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त किए गए मॉनिटरिंग कमेटी पर भी मनमानी का आरोप लगाया था। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर के अध्यक्षता में न्यायालय ने जनप्रतिनिधि मनोज तिवारी से सील तोड़ने की इजाजत से लेकर अधिकार तक के कई तीखे सवाल किए थे।
बता दें, न्यायालय के कानूनों का अवमानना करने पर अधिकतम 6 महीने की सजा और 2000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।